Kavita in Hindi
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में क्या जरूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो पत्थरों में भी जुबाँ होती है दिल होते है अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो फासला नजरों का धोखा भी तो हो सकता है वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो अच्छा सफर था सुनाने के लिए, लोग मिलते है बिछड़ जाने के लिए, बेईमानी का बाजार इतना जालिम है, होठों को रिश्वत देते हैं मुस्कुराने के लिए, हर मर्ज का बस यही है आखरी इलाज, नया दर्द चाहिए पुराना गम भुलाने के लिए, खामोशियाँ भी बहुत शोर करती हैं, गुम होना पड़ता है नजर आने के लिए, कभी दिन के उजाले रास्ता भटका देते हैं, कभी चिराग ही काफी है राह दिखाने के लिए, अख्तर जिन्दगी से दुश्मनी महंगी पड़ी, हर वक्त तैय्यार है तुझे अजमाने के लिए।